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मीरा बाई

मीरा बाई
जन्म मीरा
c. १४९८
Bajoli, नागौर, राजस्थान, भारत
गुरु/शिक्षक Saint Ravidasji
दर्शन भक्ति काल
साहित्यिक कार्य भगवान कृष्ण पर अनेक पद्य

राजा रवि वर्मा द्वारा बनाया गया मीराबाई का चित्र
मीराबाई (१५०४-१५५८) कृष्ण-भक्ति शाखा की प्रमुख कवियित्री हैं। उनका जन्म १५०४ ईस्वी में जोधपुर के पास मेड्ता ग्राम मे हुआ था। कुड्की में मीरा बाई का ननिहाल था। उनके पिता का नाम रत्नसिंह था। उनके पति कुंवर भोजराज उदयपुर के महाराणा सांगा के पुत्र थे। विवाह के कुछ समय बाद ही उनके पति का देहान्त हो गया। पति की मृत्यु के बाद उन्हे पति के साथ सती करने का प्रयास किया गया किन्तु मीरां इसके लिए तैयार नही हुई। वे संसार की ओर से विरक्त हो गयीं और साधु-संतों की संगति में हरिकीर्तन करते हुए अपना समय व्यतीत करने लगीं। कुछ समय बाद उन्होंने घर का त्याग कर दिया और तीर्थाटन को निकल गईं। वे बहुत दिनों तक वृन्दावन में रहीं और फिर द्वारिका चली गईं। जहाँ संवत १५५८ ईस्वी में वो भगवान कृष्ण कि मूर्ति मे समा गई। मीरा बाई ने कृष्ण-भक्ति के स्फुट पदों की रचना की है।

जीवन परिचय

मीराबाई का मंदिर, चित्तौड़गढ़ (१९९०)
कृष्णभक्ति शाखा की हिंदी की महान कवयित्री हैं। उनकी कविताओं में स्त्री पराधीनता के प्रती एक गहरी टीस है, जो भक्ति के रंग में रंग कर और गहरी हो गयी है।[1] मीरांबाई का जन्म संवत् 1504 में जोधपुर में कुरकी नामक गाँव में हुआ था।[2] इनका विवाह उदयपुर के महाराणा कुमार भोजराज के साथ हुआ था। ये बचपन से ही कृष्णभक्ति में रुचि लेने लगी थीं विवाह के थोड़े ही दिन के बाद उनके पति का स्वर्गवास हो गया था। पति के परलोकवास के बाद इनकी भक्ति दिन- प्रतिदिन बढ़ती गई। ये मंदिरों में जाकर वहाँ मौजूद कृष्णभक्तों के सामने कृष्णजी की मूर्ति के आगे नाचती रहती थीं। मीरांबाईका कृष्णभक्ति में नाचना और गाना राज परिवा�
[11:56am, 22/03/2015] ‪+91 94208 16427‬: मीरा बाई - विकिपीडिया - कृष्णभक्ति शाखा की हिंदी की महान कवयित्री हैं। उनकी कविताओं में स्त्री पराधीनता के प्रती एक गहरी टीस है, जो भक्ति के रंग में रंग कर और गहरी हो गयी है।[1] मीरांबाई का जन्म संवत् 1504 में जोधपुर में कुरकी नामक गाँव में हुआ था।[2] इनका विवाह उदयपुर के महाराणा कुमार भोजराज के साथ हुआ था। ये बचपन से ही कृष्णभक्ति में रुचि लेने लगी थीं विवाह के थोड़े ही दिन के बाद उनके पति का स्वर्गवास हो गया था। पति के परलोकवास के बाद इनकी भक्ति दिन- प्रतिदिन बढ़ती गई। ये मंदिरों में जाकर वहाँ मौजूद कृष्णभक्तों के सामने कृष्णजी की मूर्ति के आगे नाचती रहती थीं। मीरांबाईका कृष्णभक्ति में नाचना और गाना राज परिवार को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने कई बार मीराबाई को विष देकर मारने की कोशिश की। घर वालों के इस प्रकार के व्यवहार से परेशान होकर वह द्वारका और वृंदावन गईं। वह जहाँ जाती थीं, वहाँ लोगों का सम्मान मिलता था। लोग उनको देवियों के जैसा प्यार और सम्मान देते थे। Post by Dr.Viren Girase Dhule.
विश्व इतिहास की सबसे साहसिक घटनाओं में से एक :

राणी पद्मिनी का इतिहास

साहस की अद्भुत मिशाल , वीर क्षत्राणी महारानी पद्मिनी को कोटि -कोटि प्रणाम। . दिल्ली के नरपिशाच बादशाह अलाउद्दीन खिलजी ने जब चित्तोड़ की महारानी पद्यमिनी के रूप की चर्चा सुनी ,तो वह रानी को पाने के लिए आतुर हो बैठा । उसने राणा भीम सिंह को संदेश भेजा की वह रानी पद्यमिनी को उसको सोंप दे वरना वह चित्तोड़ की ईंट से ईंट बजा देगा। अलाउद्दीन की धमकी सुनकर राणा भीम सिंह ने भी उस नरपिशाच को जवाब दिया की वह उस दुष्ट से रणभूमि में बात करेंगे। कामपिपासु अलाउद्दीन ने महारानी को अपने हरम में डालने के लिए सन १३०३ में चित्तोड़ पर आक्रमण कर दिया। भारतीय वीरो ने उसका स्वागत अपने हथियारों से किया। राजपूतों ने इस्लामिक नरपिशाचों की उतम सेना वाहिनी को मूली गाजर की तरह काट डाला। एक महीने चले युद्ध के पश्चात् अलाउद्दीन को दिल्ली वापस भागना पड़ा। चित्तोड़ की तरफ़ से उसके होसले पस्त होगए थे। परन्तु वह महारानी को भूला नही था।कुछसमय बाद वह पहले से भी बड़ी सेना लेकर चित्तोड़ पहुँच गया।

चित्तोड़ के 10000 सैनिको के लिए इस बार वह लगभग १००००० की सेना लेकर पहुँचा। परंतु उसकी हिम्मत चित्तोड़ पर सीधे सीधे आक्रमण की नही हुई। उस पिशाच ने आस पास के गाँवो में आग लगवा दी,हिन्दुओं का कत्लेआम शुरू कर दिया। हिंदू ललनाओं के बलात्कार होने लगे। उसके इस आक्रमण का प्रतिकार करने के लिए जैसे ही राजपूत सैनिक दुर्ग से बहार आए ,अलाउदीन ने एक सोची समझी रणनीति के अनुसार कुटिल चाल चली। उसने राणा को संधि के लिए संदेश भेजा। राणा भीम सिंह भी अपनी प्रजा के कत्लेआम से दुखी हो उठे थे। अतः उन्होने अलाउद्दीन को दुर्ग में बुला लिया। अथिति देवो भवः का मान रखते हुए राणा ने अलाउद्दीन का सत्कार किया तथा उस वहशी को दुर्ग के द्वार तक छोड़ने आए। अलाउद्दीन ने राणा से निवेदन किया की वह उसके तम्बू तक चले । राणा भीम सिंह उसके झांसे में आ गए। जैसे हीवो उसकी सेना के दायरे में आए मुस्लमान सैनिकों ने झपटकर राणा व उनके साथिओं को ग्रिफ्तार कर लिया। अब उस दरिन्दे ने दुर्ग में कहला भेजा कि महारानी पद्यमिनी को उसके हरम में भेज दिया जाय ,अन्यथा वह राणा व उसके साथियों को तड़पा तड़पा कर मार डालेगा।



चित्तोड़ की आन बान का प्रश्न था।कुछ चुनिन्दा राजपूतों की बैठक हुई। बैठक में एक आत्मघाती योजना बनी। जिसके अनुसार अलाउद्दीन को कहला भेजा की रानी पद्यमिनी अपनी ७०० दासिओं के साथ अलाउद्दीन के पास आ रही हैं। योजना के अनुसार महारानी के वेश मेंएक १४ वर्षीय राजपूत बालक बादल को शस्त्रों से सुसज्जित करके पालकी में बैठा दिया गया। बाकि पाल्किओं में भी चुनिन्दा ७०० राजपूतोंको दासिओं के रूप में हथियारों से सुसज्जित करके बैठाया गया। कहारों के भेष में भी राजपूत सैनिकों को तैयार किया गया।लगभग 2100 राजपूत वीर गोरा,जो की बादल का चाचा था, के नेत्र्तव्य में १००००० इस्लामिक पिशाचों से अपने राणा को आजाद कराने के लिए चल दिए। अलाउद्दीन ने जैसे ही दूर से छदम महारानी को आते देखा ,तो वह खुशी से चहक उठा। रानी का कारंवा उसके तम्बू से कुछ दूर आकर रूक गया। अलाउद्दीन के पास संदेश भेजा गया कि महारानी राणा से मिलकर विदा लेना चाहती हैं। खुशी मेंपागल हो गए अलाउद्दीन ने बिना सोचे समझे राणाभीम सिंह को रानी की पालकी के पास भेज दिया।

Gora Badal

जैसे ही राणा छदम रानी की पालकी के पास पहुंचे ,लगभग ५०० राजपूतों ने राणा को अपने घेरे में ले लिया,और दुर्ग की तरफ़ बढ गए। अचानक चारो और हर हर महादेव के नारों से आकाश गूंजा, बचे हुए १६०० राजपूत ,१००००० इस्लामिक पिशाचों पर यमदूत बनकर टूट पड़े।धोखेबाज इस्लामिक सैनिक हाय अल्लाह,मर गए अल्लाह और धोखा धोखा करते हुए चरों और भागने लगे। १६०० हिंदू वीरों ने अलाउद्दीन की लगभग ९००० की सेना को देखते ही देखते काट डाला। और सदा के लिए भारत माता की गोद में सो गए। इस आत्मघाती रणनीति में दो वीर पुरूष गोरा व बादल भारत की पोराणिक कथाओं के नायक बन गए। इस युद्ध में नरपिशाच अलाउद्दीन खिलजी भी बुरी तरह घायल हुआ। यह इतिहास की घटना विश्व इतिहास की महानतम साहसिक घटनाओं में से एक है।

अच्छी लगी हो तो शेयर करे ताकि और लोग भी हमारी वीर क्षत्राणी की कहानी पढ़ सके .. जय हिन्द .. …
॥¤॥ जय क्षत्रिय ॥¤॥…
 ॥¤॥ जय क्षात्र-धर्म ॥¤॥ अच्छी लगी तो शेअर करे ……Jay Rajputana.
पु ल देशपांडे
सुन्दर कल्पना !!
.
एकदा Ego विकून पहा.....
जेव्हा कोणीही घेणार नाही
तेव्हा समजेल की किती फालतू गोष्ट
आपण इतके दिवस बाळगत होतो...???
.
बोलावे तर विचार करुन....
नाहीतर बडबड सगळेच करतात....
.
ऐकावे तर अंतःकरणातून.....
आरोळी तर सारेच देतात....!
.
टिपावं तर अचूक टिपावं....
नेम तर सारेच धरतात....
.
शिकावं तर माफ करायला....
राग तर सगळेच करतात....!
.
खळगी भरावी तर उपाशी पोटाची....
पोट भरुन तर सारेच जेवतात....
.
प्यावे तर दुसर्याच्या दुःखाचे विष...
सुखाचे घोट तर सारेच घेतात...!
.
जगावं तर इतरांसाठी....
स्वतःसाठी तर सगळेच जगतात....
.
ठेवावा तर शत्रुवर पण विश्वास...
घात तर सारेच करतात...!
.
दुःखामधे सुधा रहावं हसत
वेळ तर सर्वाँचीच येते....
.
झालं तर आयुष्याचं सोनं व्हावं
राख तर सर्वाँचीच होते....
पु ल देशपांडे
सुन्दर कल्पना !!
.
एकदा Ego विकून पहा.....
जेव्हा कोणीही घेणार नाही
तेव्हा समजेल की किती फालतू गोष्ट
आपण इतके दिवस बाळगत होतो...???
.
बोलावे तर विचार करुन....
नाहीतर बडबड सगळेच करतात....
.
ऐकावे तर अंतःकरणातून.....
आरोळी तर सारेच देतात....!
.
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नेम तर सारेच धरतात....
.
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राग तर सगळेच करतात....!
.
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पोट भरुन तर सारेच जेवतात....
.
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सुखाचे घोट तर सारेच घेतात...!
.
जगावं तर इतरांसाठी....
स्वतःसाठी तर सगळेच जगतात....
.
ठेवावा तर शत्रुवर पण विश्वास...
घात तर सारेच करतात...!
.
दुःखामधे सुधा रहावं हसत
वेळ तर सर्वाँचीच येते....
.
झालं तर आयुष्याचं सोनं व्हावं
राख तर सर्वाँचीच होते....

जीवण जगण्याचे सुन्दर उपाय
Posted by Dr.viren girase

आज मला हा लेख वाचून तरुण बंधवान साठी शेअर कारावास वाटला.म्हणून प्रसिद्ध करीत आहे.
शिव खेरा ,(‘सेल्फ हेल्प’ पुस्तकांचे लोकप्रिय
लेखक. भारतीय तरुण
मुलांनी काही गोष्टी आवर्जून
केल्या पाहिजेत, असं
सांगणार्या त्यांच्या एका वेबसाइटवरील
लेखाचा संपादित आणि मुक्त अनुवाद) -
आजपासून पाच वर्षांनी तुम्ही कुठं असाल?
या प्रश्नाचं उत्तर फक्त दोनच गोष्टी देऊ
शकतात.
१) आज तुम्ही नेमकी कुठली पुस्तकं
वाचताय?
२) आणि सध्या तुम्हाला संगत
कुणाची आहे?
चांगली पुस्तकंही वाचत नसाल,
बरी माणसंही अवती-भोवती नसतील, तर
तुमचं भविष्य
दुसर्या कुणी कशाला सांगायला हवं?
- मला वाटतं तरुण मुलांनी फक्त
काही मोजक्या गोष्टी लक्षात
ठेवल्या आणि तेवढय़ा मनापासून
केल्या तरी ते त्यांचं जगणं एका खास
उंचीवर नेऊ शकतात.
१)जे कराल, ते उत्तम करा!
विसरून जा की,
तुमची स्पर्धा दुसर्या कुणाशी आहे! जे
कराल ते उत्तम करा, पहिल्याच फटक्यात
असं खास काहीतरी करा की, ते उत्तमच
असलं पाहिजे! आणि मुख्य म्हणजे जे केलं ते
केलं, त्याहून काहीतरी खास
करण्याची तयारी करा!
२) इन्व्हॉल्व व्हा
आपण जर प्रश्न सोडवायला राजी नसू तर
आपणही त्या प्रश्नाचाच एक भाग बनतो,
स्वत:च प्रॉब्लेम होऊन बसतो. त्यामुळे सतत
तक्रार करणं सोडा, जे समोर येईल
त्याला भीडा. त्यामुळे एकतर झोकून देऊन
काम करा, नाहीतर निदान तोंड तरी बंद
करा.
३)थोडंसं एक्स्ट्रा
लोकांच्या अपेक्षांपेक्षा जास्त
काहीतरी करण्याची, जास्त प्रयत्न करून
थोडं जास्त काम करण्याची तयारी ठेवा!
जेमतेम आणि नेमून दिलेलं काम तर सगळंच
करतात, तुम्ही काहीतरी एक्सट्रा करणार
की नाही हे ठरवा!
४) भूमिका घ्या
सगळंच गोलमोल,
वारा आला तशी फिरवली पाठ. तर
तुम्ही लाटेबरोबर वाहून जाल.
त्यापेक्षा निष्ठा ठेवा,
भूमिका घ्या आणि त्यावर ठाम रहा.
५) फोकस
तुमचं लक्ष्य काय, तुम्हाला नक्की काय
हवंय, हे विसरू नका. काहीही झालं तरी,
तुमचा फोकस हलता कामा नये.
६) मित्र जरा जपून निवडा.
नेता चांगला असतो, पण त्याचे सल्लागार
वाईट असतात, हे वाक्य आपण सतत ऐकतो.
तसं आपलं होऊ नये, म्हणून जरा मित्र चांगले
आणि जपून निवडा. चांगली यशस्वी माणसं
पहा आणि त्यांचे मित्र पहा,
संगतीचा असर होतोच.
७) स्वत:वर भरवसा ठेवा
अनेकदा इथंच गाडं घसरतं. असतं सगळं पण
आपला स्वत:वर भरवसा नसतो.
आपल्याला स्वत:विषयी चांगलं वाटलं तर
जग चांगलं दिसतं.
नात्यागोत्याची माणसं
चांगली वागतात. त्यामुळे जरा स्वत:वर
भरवसा ठेवून, स्वत:वरही प्रेम करा.
८) कॅरॅक्टर जपा.
एका रात्रीत काही कुणाचं कॅरॅक्टर तयार
होत नाही.
अनेकदा काही माणसांविषयी आपल्याला वाटतं
भलतंच, पण ती असतात वेगळीच. त्यामुळे
आपली रेप्युटेशन काय तयार होतेय याकडे
जरा लक्ष द्या.
एकदा प्रतिमा डागाळली तर
ती सुधारायला प्रचंड कष्ट पडतात.
९) जगायचं कशासाठी?
विचारा स्वत:ला! आपण
कशासाठी जगतोय. आपलं ध्येय काय? जगणं
खूप सुंदर आहे, ते नाकारू नका. असं म्हणतात
ना की, काहीतरी करून अपयश मिळणं हे
काहीच न करण्यापेक्षा केव्हाही चांगलंच!
त्यामुळे आपल्या जगण्याची दिशा शोधा.
१0) दिवसाची सुरुवात आनंदी
उठलं की फोन असं होतं का तुमचं?
त्यापेक्षा दिवसाची सुरुवात
आनंदी होईल, असा प्रयत्न करा.
अनेकदा छोट्या गोष्टीनं मूड
जातो आणि आपण काहीच करत नाही.
फक्त चिडचिड. असं होऊ नये. त्यामुळे
उठल्या क्षणापासून स्वत:ला पॉझिटिव्ह
एनर्जीचा एक डोस द्या.






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छञपती संभाजी राजे भोसले
जन्म - 14 मे 1657
मृर्त्यू-11 मार्च 1689
फक्त 32 वर्षाचे ऊनेपूरे आयुष्य बहूभाषातज्ञ ( जगाच्या पाठीवर एकमेव सम्राट ) :-मराठी,हिंन्दी
,इंग्रजी,गूजराती,पाली,संस्कृत,तमीळ,तेलगू,कन्नड,फ्रेंच,ऊर्दू,फारसी,कोकणी,भोजपूरी
बोलीभाषा :-,तावडी,अहीराणी,चंदगडी,मालवाणी,वह्राडी
प्राच्यविद्या पंडीत
संस्कृत पंडित,नितीशास्ञ,धर्मशास्त्र,अर्थशास्ञ,राज्यशास्ञ,काव्यशास्ञ,भाषाशास्ञ,इतिहा
स,संस्कृती,संरक्षण शास्ञ,तर्कशास्ञ,विज्ञान,समाजशास्त्र,यूद्धशास्ञ,न्याय व कायदा,संगीत -
नाट्य ,संगीत रचनेचा अभ्यास
( नखशिखांत,नायिकाभेद )उत्तम कवी.धर्मग्रंथ भाष्यकार,शाक्त उपासक
कला/विद्या :-मल्ल विद्या,भालाफेक,तलवार बाजी,घोडेस्वारी,व्यायाम व कसरती,योगा,धनूर
विद्या,पोहने,दांडपट्टा,गणीमी काव्यात तरबेज,
स्वतःची राजमूद्रा :-"श्री शंभो शिवजातस्य मुद्रा द्योंरिव राजते यदकसेविनो लेखा वर्तते कस्य
नोपरि "
ग्रंथनिर्मीती :-
" बूधभूषनम "(संस्कृत मध्ये 14 व्या वर्षी)"सातसतक" "नायिकाभेद" (नृत्यशास्ञ, नेपथ्य,संगीत रचना )
"नखशिखांत" "दंडनिती" हा राज्यशास्ञ आणि व्यवस्थेवर आधारलेला ग्रंथ आणि असे एकूण 32
उपग्रंथ,स्वताचे स्वतंञ ग्रंथालय,140 अजिंक्य लढाया (विश्वातील एकमेव योद्धा ..गिनीज
बूक)घोडेस्वारीत अभूतपूर्व प्राविण्य 360 डिग्रीमध्ये पळता घोडा फिरवण्याची कसब,एकाच वेळी 12
आघाड्यांचे नेत्रत्व इंग्रज,अरबी,हबशी,आदीलशाही, मोगल,कूतूबशाही,पोर्तुगीज, सिध्धी, बंडखोर
यांच्या विरुद्ध एकाच वेळी लढा,संत वचने,अभंगाचा गाढा अभ्यास,तुकाराम
महाराजाच्या तत्वज्ञानाचा अभ्यास वारकरी संप्रदायाला सहकार्य.पंढरपूर-देहू हा संत
विचारांचा "अभंग मार्ग "पूढे नेण्यासाठी प्रयत्न,शहाजी राजे,शिवाजी राजे,जिजाऊ
यांच्या विचारांचा प्रभाव संभाजी राजांमध्ये आढळते
राज्यभिषेकाची प्रेरणा :-छञपती शिवाजी महाराजांच्या
राजाभिषेका मागे छञपती संभाजी महाराजांचा अभ्यास,युक्तिवाद आणि परिश्रम होत.8
व्या वर्षी 7 हजारी मनसबदार (सात हजार सैनिकांचे नेत्रूत्व) 8 वर्षाचे असताना 8 भाषा अवगत,8
वर्षाचे असताना शिवरायांसह दिल्ली दरबार लाथाडला, स्वाभिमान कशाला म्हणतात हे
जगाला शिकवले.१८ वर्षाचे असताना बूधभूषनम सारखा "मानसून"(Mansoo
n)सारख्या गोष्टींचा उल्लेख करणारा महत्वपृर्ण ग्रंथ लिहिला,शाक्त पद्धतीने संभाजी युवराज
झाले,फक्त 23 वर्षाचे असताना औरंगजेबा सारख्या अशिया खंडातील सर्वात
मोठ्या बादशहा विरूद्ध युद्धभूमीवर स्वतः 12 आघाड्यांचे नेत्रृत्व केले.25 वर्षाचे असताना "मुंबई "
विकत घेण्यासंदर्भात इंग्लिश गव्हर्नर "केजविनशी" वाटाघाटी केल्या.
छत्रपती संभाजीराजे बद्दल जगातील मान्यवरांचे गौरोद्रगार-
ग्रँन्ड डफ (English Historian ) -
"हा संभाजी स्वताच्या बुद्धी आणी शौर्याच्या बलावर इतका बुलंद आणी बलाढ्या झाला आहे
कि कोणी शत्रु त्याच्यावर आक्रमण करायला धजवेनाच जणु त्याला सत्तेची एका मागुन एक युद्ध
करन्याची नशा चढली आहे.
विश्वास पाटील - छत्रपती संभाजीराजे हे एक महाकवी होते .
वा .सी .बेंद्रे - छत्रपती संभाजीराजे चे चारित्र हा एक उच्च कोटीचा आर्दश आहे.या देशातील
प्रस्थापितांनी पुर्व ग्रह दूषित ठेऊनं छत्रपती संभाजीराजेचे चारित्र्य बदनाम करण्याचे निंदनिय कृत्य
केले .
खाफी खान -(औंरगजेबाचा चारित्रकार)-शिवरांय पेक्षा दहापट तापदायक आहेत संभाजीराजे .
संघर्ष व उपेक्षा :-दिड वर्षाचे असताना माँसाहेब
सईआईचा मृत्यू,वयाच्या आठव्या वर्षी स्वराज्या करिता ओलीस राहीले
"संभाजीराजे संकटांवर केवळ स्वार झाले नाहीत; तर त्यांनी सर्व आक्रमकांच्या उरात धडकी भरवली.
स्वराज्याचा निम्म्या भारतात विस्तार केला.राजपुतांची साथ मिळाली असती तर ते दिल्लीचे
तख्तही ते काबीज करू शकले असते. ही कामगिरी “केवळ अद्भुत’ म्हणता येईल अशीच आहे.जगात
त्याची तुलना होऊ शकत नाही. केवळ ९ वर्षांच्या काळात एकही पराभव,तह वा माघार नसलेल्या १२८
लढाया त्यांनी जिंकून आपल्या पित्याच्या नावाला खूप मोठा सन्मान प्राप्त करून दिला. ""
अश्या महान महान पुत्रास आणि महान राज्यास मानाचा त्रिवार मुजरा...!!!
||छत्रपतीँची निष्ठा हीच आमची प्रतिष्ठा||
॥जय जिजाऊ॥
॥जय शिवराय॥
॥जय शंभूराजे॥